“क्रिसिल रिपोर्ट का सुझाव: कोर महंगाई विश्लेषण से सोने को किया जाए बाहर, बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के बीच प्रभाव पड़ने की आशंका”
क्रिसिल द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे खाद्य और ईंधन को कोर महंगाई के आकलन से अलग रखा जाता है, उसी तरह अब वैश्विक अनिश्चितता की स्थितियों में सोने को भी इस विश्लेषण से बाहर किया जाना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक कारकों से प्रभावित होने के कारण सोने की कीमतें घरेलू मांग के वास्तविक प्रभाव को गलत रूप में प्रस्तुत कर सकती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही मुख्य मुद्रास्फीति सूचकांक में सोने की हिस्सेदारी मात्र 2.3% है, लेकिन मई 2025 तक समाप्त 12 महीनों में कोर महंगाई में इसकी हिस्सेदारी 17% तक रही। इस अवधि में सोने की मुद्रास्फीति 24.7% रही, जो पिछले वित्त वर्ष 2024 में 15.1% थी। जबकि अन्य सभी वस्तुओं की औसत संयुक्त मुद्रास्फीति केवल 2.4% रही।
मई 2024 से मई 2025 के बीच कोर सीपीआई मुद्रास्फीति 111 आधार अंक (bps) बढ़कर 4.2% हो गई। हालांकि इस दौरान अधिकतर श्रेणियों में कीमतें घटीं, लेकिन मोबाइल टैरिफ, ट्रैवल एवं ट्रांसपोर्ट, सौंदर्य प्रसाधन, चांदी और विशेष रूप से सोना इन प्रवृत्तियों से अलग रहे और इनमें महंगाई बढ़ी।
क्रिसिल का कहना है कि यदि सोने की कीमतें सामान्य बनी रहतीं, तो कोर मुद्रास्फीति मई 2025 में 4.2% की बजाय लगभग 3.4% होती। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वैश्विक स्तर पर अस्थिरता के समय, जब सोना निवेश का सुरक्षित विकल्प बन जाता है, ऐसे में इसकी कीमतों में वृद्धि घरेलू उपभोग का संकेत नहीं देती, इसलिए इसे कोर महंगाई के आकलन से बाहर रखना अधिक उपयुक्त होगा।
भारत में कोर महंगाई में सोने का भार अपेक्षाकृत अधिक है, जबकि अन्य देशों में यह हिस्सा बहुत कम होता है, जिससे वैश्विक केंद्रीय बैंकों के महंगाई अनुमान पर इसका सीमित असर होता है। इस आधार पर रिपोर्ट ने नीति निर्माताओं को सलाह दी है कि वे मूल्य स्थिरता का सटीक विश्लेषण करने के लिए सोने को अलग रखने पर विचार करें!
