“विचार प्रवाह: बहुसंख्यकों की बात को हिंदुओं की आवाज बताना एक सुनियोजित साजिश“
हाल ही में एक वायरल वीडियो में जज शेखर यादव ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के कार्यान्वयन का समर्थन करते हुए कहा कि कानूनों को बहुसंख्यकों की प्राथमिकताओं के अनुरूप होना चाहिए। उनका बयान, “यह हिंदुस्तान है, जहां बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलता है,” ने सियासी हलचल मचा दी।
बहुसंख्यकों की बात को हिंदू धर्म से जोड़ने की साजिश
जज शेखर यादव के इस बयान को कुछ राजनीतिक दल और संगठन हिंदू धर्म से जोड़कर विवाद पैदा कर रहे हैं। हालांकि, जज का कहना था कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुसंख्यकों की राय को प्राथमिकता दी जाती है।
लोकतंत्र में बहुसंख्यकों का महत्व
लोकतंत्र का आधार बहुमत है। चाहे चुनाव हों या न्यायालय के बहु-सदस्यीय बेंच के फैसले, हमेशा बहुमत का पालन किया जाता है। 2019 में अयोध्या मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय बेंच का बहुमत से दिया गया फैसला इसका उदाहरण है।
विवाद और कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जज शेखर यादव को तलब किया है। उन पर न्यायिक नीति की सीमा पार करने के आरोप लगे हैं। विपक्षी दलों ने इस बयान को संविधान और न्यायिक नैतिकता के खिलाफ बताया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का समर्थन
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जज यादव के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि वे बहुसंख्यक समाज की बात करने वालों की आवाज को दबाना चाहते हैं।
विपक्ष की दोहरी राजनीति
मुख्यमंत्री ने विपक्ष को निशाने पर लेते हुए कहा कि वे बहुसंख्यक समाज की वास्तविक समस्याओं को अनदेखा कर सिर्फ अल्पसंख्यकों की राजनीति कर रहे हैं।
बहुसंख्यकों की आवाज का व्यापक अर्थ
बहुसंख्यक शब्द सिर्फ हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है। यह उन सभी मुद्दों की ओर इशारा करता है जो देश की बड़ी आबादी के लिए प्रासंगिक हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, और रोजगार। इसे किसी एक धर्म या समुदाय की आवाज बताना एक सुनियोजित साजिश है।
निष्कर्ष
बहुसंख्यकों की बात को किसी धर्म विशेष से जोड़ने के बजाय इसे राष्ट्रीय मुद्दों के रूप में देखा जाना चाहिए। लोकतंत्र में बहुसंख्यकों की प्राथमिकताओं का सम्मान करना अनिवार्य है, क्योंकि यही जनता की सामूहिक आवाज है।