इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग नोटिस, जानिए जजों को हटाने की प्रक्रिया

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग का नोटिस

इन दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव चर्चा में बने हुए हैं। हाल ही में उनके द्वारा विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में की गई टिप्पणी को लेकर विवाद खड़ा हो गया था।

इस विवाद के बीच कई विपक्षी सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग का नोटिस भेज दिया है। राज्यसभा में इस नोटिस की अगुआई वरिष्ठ सांसद कपिल सिब्बल ने की है। नोटिस को राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सौंपा गया है।

महाभियोग की प्रक्रिया

भारत में किसी जज को हटाने की प्रक्रिया संविधान के तहत बेहद जटिल और पारदर्शी है। इसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. महाभियोग प्रस्ताव का प्रारंभ
    • संसद के किसी भी सदन (राज्यसभा या लोकसभा) में सांसद महाभियोग का प्रस्ताव ला सकते हैं।
    • इसके लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों और लोकसभा में 100 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं।
  2. जांच समिति का गठन
    • नोटिस स्वीकार होने के बाद, एक जांच समिति का गठन किया जाता है।
    • समिति में एक सुप्रीम कोर्ट जज, एक हाई कोर्ट जज, और एक वरिष्ठ न्यायविद शामिल होते हैं।
    • समिति आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट सदन के समक्ष प्रस्तुत करती है।
  3. संसद में बहस और मतदान
    • यदि समिति की रिपोर्ट में आरोप सही पाए जाते हैं, तो प्रस्ताव पर संसद में बहस होती है।
    • दोनों सदनों में प्रस्ताव को पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
  4. राष्ट्रपति की मंजूरी
    • प्रस्ताव दोनों सदनों से पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
    • राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जज को पद से हटाया जाता है।

जस्टिस शेखर यादव पर आरोप

महाभियोग प्रस्ताव में उनके द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणी और न्यायिक गरिमा के उल्लंघन को आधार बनाया गया है। विपक्ष का कहना है कि उनके बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हैं।

अब यह देखना होगा कि राज्यसभा में यह नोटिस स्वीकार होता है या नहीं और महाभियोग की प्रक्रिया आगे बढ़ती है या नहीं।

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