मध्य-पूर्व में विफल हुए ईरान के रणनीतिक ख़्वाब, अब आगे क्या हैं विकल्प?

मध्य-पूर्व में ईरान के टूटते प्रभाव के संकेत

दमिश्क स्थित ईरानी दूतावास में टूटे शीशे, रौंदे गए झंडों और बिखरे पोस्टरों के बीच ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के पोस्टर लगे हुए हैं। इसके साथ ही, लेबनान के हिज़्बुल्लाह के पूर्व नेता हसन नसरल्लाह की फटी हुई तस्वीरें भी नजर आ रही हैं।

हसन नसरल्लाह की मौत
सितंबर में बेरूत में हुए इसराइली हवाई हमले में हसन नसरल्लाह की मौत हो गई थी। उनकी मौत को क्षेत्र में ईरान समर्थित संगठनों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

ईरान के कासिम सोलेमानी की याद
दूतावास के बाहर फिरोजी रंग की टाइलें अभी भी चमक रही हैं, लेकिन ईरान के प्रभावशाली पूर्व सैन्य कमांडर और रिवोल्यूशनरी गार्ड के नेता कासिम सोलेमानी के बड़े बैनर को भी नष्ट कर दिया गया है।
कासिम सोलेमानी को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिकी हमले में मार गिराया गया था।

मध्य-पूर्व में ईरान का घटता प्रभाव
यह घटनाक्रम ईरान के लिए एक संकेत है कि मध्य-पूर्व में उसका भू-राजनीतिक प्रभाव कमजोर हो रहा है। ईरान समर्थित संगठनों, जैसे हिज़्बुल्लाह और अन्य गुटों, को इसराइली हमलों और पश्चिमी दबाव का लगातार सामना करना पड़ रहा है।

ईरान के लिए चुनौतियां

  1. प्रभावशाली नेताओं की मौत: हसन नसरल्लाह और कासिम सोलेमानी जैसे नेताओं की मौत से ईरान के नेतृत्व की क्षमताओं को झटका लगा है।
  2. क्षेत्रीय दबाव: सीरिया, लेबनान और इराक जैसे देशों में ईरान के प्रभाव को चुनौती मिल रही है।
  3. अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध: अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने ईरान की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया है।

आगे के विकल्प
ईरान के पास अब विकल्प सीमित हैं:

  • सैन्य गुटों का पुनर्गठन: ईरान समर्थित संगठनों को फिर से संगठित करना और मजबूत करना।
  • राजनयिक दबाव: क्षेत्रीय कूटनीति के जरिए नए गठजोड़ बनाना।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातचीत: पश्चिमी देशों और अमेरिका के साथ किसी राजनीतिक समाधान की तलाश करना।

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