“हज़ारों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाली पूजा: क्यों चुना उन्होंने यह कठिन रास्ता?“
पूजा शर्मा, जो सिर्फ़ 27 साल की हैं, अब तक लगभग 5,000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। ये वे शव होते हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाती या फिर उन्हें कोई अपनाने वाला नहीं होता।
पूजा हर दिन अलग-अलग अस्पतालों के मुर्दाघरों से इन गुमनाम शवों को लेकर श्मशान घाट या कब्रिस्तान जाती हैं और पूरे धार्मिक विधि-विधान के साथ उनका अंतिम संस्कार करती हैं। अगर शव हिंदू का हो तो श्मशान घाट, मुस्लिम का हो तो क़ब्रिस्तान और ईसाई का हो तो सिमेट्री में उनका अंतिम संस्कार करवाती हैं।
शुरुआत कैसे हुई?
पूजा के इस काम की प्रेरणा उनके अपने बड़े भाई की मौत के बाद मिली। 13 मार्च 2022 को उनके भाई का निधन हो गया, जिसके बाद परिवार में अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी पूजा पर आ पड़ी। उस समय पूजा के पिता सदमे में आ गए थे और कोमा में चले गए।
पूजा बताती हैं, “पारंपरिक तौर पर केवल पुरुष अंतिम संस्कार करते हैं, लेकिन जब कोई विकल्प न मिला तो मैंने खुद हिम्मत करके भाई का अंतिम संस्कार किया। उसी समय मुझे महसूस हुआ कि मरने वालों की देखभाल करने वाला भी कोई होना चाहिए।”
समाज की सोच और चुनौतियां
शुरुआती दिनों में पूजा को कई विरोधों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लोग कहते थे कि महिलाओं को श्मशान घाट नहीं जाना चाहिए। पूजा का कहना है कि उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और पाया कि किसी भी धर्म में यह नहीं लिखा है कि महिलाएं अंतिम संस्कार नहीं कर सकतीं।
वह कहती हैं, “लोगों ने मुझसे बात करना बंद कर दिया। कहते थे कि मेरे पीछे आत्माएं चलती हैं। यहां तक कि मेरी शादी न होने की बातें होने लगीं। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।”
समाज सेवा के लिए समर्पित
पूजा ने एक ग़ैर-सरकारी संगठन (NGO) की शुरुआत की है। उनके पास एक एंबुलेंस भी है, जो शवों को ले जाने और ज़रूरतमंदों की मदद के लिए समर्पित है। वह अस्पतालों और पुलिस के संपर्क में रहती हैं, ताकि गुमनाम शवों की पहचान कर उनका अंतिम संस्कार करवाया जा सके।
प्रेरणा और आगे की सोच
पूजा कहती हैं, “मुझे खुशी है कि मैं बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों और वर्गों के लोगों की मदद कर रही हूं। अगर हम सब मिलकर एक-दूसरे का साथ दें, तो यह दुनिया और भी खूबसूरत हो जाएगी।”
उनकी कहानी न सिर्फ़ समाज की पुरानी परंपराओं को चुनौती देती है बल्कि यह संदेश भी देती है कि एक व्यक्ति की सेवा भावना कैसे हज़ारों लोगों की गरिमा को सम्मान दे सकती है।