“सिंधु जल संधि पर भारत का सख्त रुख: आतंक को लेकर पाकिस्तान पर जल कूटनीति का दबाव“
भारत ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर पाकिस्तान को जल कूटनीति के जरिए करारा जवाब दिया है।
सिंधु जल संधि, जो कि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी, दशकों से भारत की उदारता का प्रतीक रही है। इस संधि के तहत भारत ने रावी, ब्यास और सतलुज नदियों पर नियंत्रण रखा, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को देने का प्रावधान रहा।
लेकिन अब भारत की नीति बदल चुकी है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने आतंकवाद पर सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि जल मोर्चे पर भी जवाब देना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान की ओर से अब तक चार पत्र भारत को भेजे जा चुके हैं, जिनमें सिंधु जल संधि की बहाली की गुहार लगाई गई है।
पाकिस्तान की वैश्विक स्तर पर बेचैनी
पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका और ब्रिटेन का रुख किया है, जहां उन्होंने 24 करोड़ लोगों की आजीविका का हवाला देते हुए जल संधि के लिए मध्यस्थता की अपील की है। लेकिन भारत का रुख स्पष्ट है – जब तक सीमा पार से आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, कोई बातचीत संभव नहीं।
भारत की नई रणनीति
नई दिल्ली अब यह दिखा रही है कि शांति की इच्छा के साथ-साथ सुरक्षा प्राथमिकता है। भारत अब किसी भी नापाक हरकत पर हर मोर्चे पर जवाब देगा – चाहे वह सीमा हो या नदी। यह नए भारत का नया स्वरूप है, जहां करुणा के साथ कठोरता भी है।
क्या अमेरिका दखल दे सकता है?
भारत ने पहले ही स्पष्ट किया है कि सिंधु जल संधि एक द्विपक्षीय मुद्दा है। अमेरिका या कोई अन्य देश इसमें कानूनी रूप से हस्तक्षेप नहीं कर सकता। विश्व बैंक की भूमिका केवल तकनीकी सलाहकार की है, न कि निर्णायक की।