“1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान का बढ़ता अलगाव और क्षेत्रीय दुश्मनी“
1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद देश का राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। क्रांति के बाद ईरान न केवल पश्चिमी देशों के निशाने पर आ गया बल्कि उसके पड़ोसी देशों के साथ भी तनाव और दुश्मनी बढ़ने लगी।
पश्चिमी देशों से टकराव
इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान ने अमेरिका और यूरोप की नीतियों का खुलकर विरोध शुरू कर दिया। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश की।
पड़ोसी देशों से विवाद
ईरान के कई पड़ोसी देशों, विशेषकर सऊदी अरब, इराक और अन्य खाड़ी देशों के साथ उसके संबंध खराब हो गए। ईरान के शिया नेतृत्व और क्षेत्र में शिया प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों ने सुन्नी बहुल देशों के साथ तनाव को और बढ़ा दिया।
आर्थिक और सैन्य रणनीति
ईरान ने क्षेत्रीय राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए सीरिया, लेबनान और अन्य देशों में अपने सहयोगी गुटों को आर्थिक और सैन्य सहायता देना शुरू किया। सीरिया में बशर अल-असद की सरकार को समर्थन देना इसी रणनीति का हिस्सा था।
ईरान और बशर अल-असद
सीरिया में गृह युद्ध के दौरान ईरान ने बशर अल-असद की सरकार को अरबों डॉलर का आर्थिक और सैन्य कर्ज़ दिया। इसका मुख्य उद्देश्य था सीरिया में ईरान के प्रभाव को मजबूत करना और असद सरकार को सत्ता में बनाए रखना।
अब इन पैसों का क्या होगा?
- सीरिया की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण यह कर्ज़ लौटाना अत्यंत कठिन है।
- ईरान के लिए यह निवेश भूराजनीतिक लाभ के रूप में देखा जाता है, जिसमें असद सरकार के जरिए क्षेत्रीय नियंत्रण हासिल करना शामिल है।
- कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ईरान इस कर्ज़ को राजनीतिक और सैन्य समर्थन के एवज़ में चुकाने की कोशिश करेगा।
भविष्य की चुनौतियां
ईरान के सामने अब चुनौती यह है कि उसे आर्थिक संकट के बीच इस कर्ज़ का पुनर्भुगतान कैसे सुनिश्चित होगा या फिर इसे राजनीतिक लाभ में कैसे बदला जाएग