“बांसटोरडा: संगमरमर की कला और आर्थिक चुनौतियाँ“
सवाई माधोपुर जिले के बौंली तहसील में बांसटोरडा गांव में पिछले 50 वर्षों से सफेद संगमरमर से मूर्तियाँ बनाने का काम चल रहा है। यहां की मूर्तियाँ, जो छोटी से छोटी 5 इंच से लेकर 10 फीट से ज्यादा ऊँचाई की होती हैं, देश-विदेश में जाती हैं। मूर्तिकारों की कारीगरी इतनी अद्भुत है कि मूर्तियाँ हूबहू सजीव इंसान जैसी दिखती हैं।
गांव के 50 से ज्यादा परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, और अब पूरे गांव के लोग मूर्ति व्यापार पर निर्भर हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इन परिवारों ने मूर्तियों का निर्माण कर अपना आजीविका का साधन बना लिया है। यहां भगवान की मूर्तियों के अलावा फोटो और स्टैच्यू भी संगमरमर से बनते हैं।
मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया: गांव में सभी को अलग-अलग कार्य सौंपे जाते हैं। परिवार के मुखिया मूर्ति बनाने के लिए पत्थर लाते हैं और मशीन से प्रारंभिक स्वरूप देते हैं। इसके बाद, परिवार की महिलाएं मूर्तियों को घिसाई करके रंगने का कार्य करती हैं, जिससे परिवार अब पूरी तरह मूर्ति व्यापार पर निर्भर हो गया है।
बाजार और बिक्री: बांसटोरडा गांव में बनी मूर्तियाँ महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, जयपुर समेत अन्य राज्यों में जाती हैं। यहां से सालभर में लगभग 10 हजार से ज्यादा मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, विशेष रूप से वैष्णव धर्म के श्रीराम, हनुमान, शिवजी और दुर्गा माता की मूर्तियाँ।
आर्थिक चुनौतियाँ: गर्मी के मौसम में गांव के मूर्तिकारों को काफी मुश्किलें आती हैं, क्योंकि बिजली की आपूर्ति सही नहीं रहने के कारण मूर्ति बनाने का काम प्रभावित होता है। इसके अलावा, सरकारी योजनाओं का लाभ न मिल पाने के कारण भी उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
स्थानीय नागरिकों की आवाज: विष्णु वैष्णव, कैलाश गॉड, और सुनीता वैष्णव जैसे स्थानीय निवासी अपनी समस्याएँ साझा करते हैं और मांग करते हैं कि उन्हें सरकारी सहायता मिले, ताकि वे अपनी परंपरागत कला को बनाए रख सकें और आर्थिक स्थिति को सुधार सकें।
बांसटोरडा गांव की यह कला और संघर्ष, दोनों ही भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, जो ध्यान और सहायता की आवश्यकता रखते हैं।