ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ उछड- पाछड के साथ संपन्न

शिमला जिले के रोहड़ू में 39 साल बाद ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ का समापन

शिमला: रोहड़ू उपमंडल की स्पैल वैली के दलगांव में 39 साल बाद आयोजित ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ का रविवार को “उछड़-पाछड़” की पारंपरिक रस्म के साथ समापन हुआ। इस महायज्ञ में हजारों लोगों ने भाग लिया और क्षेत्र के कई प्रमुख देवताओं ने इसमें उपस्थिति दर्ज करवाई।

भूंडा महायज्ञ: एक अनूठी परंपरा

भूंडा महायज्ञ हिमाचल प्रदेश की प्राचीन धार्मिक परंपराओं में से एक है। इसे “देवताओं के समागम” का पर्व भी कहा जाता है, जिसमें विभिन्न गांवों के देवता अपने देवलुओं (अनुयायियों) के साथ मेज़बान देवता से मिलने आते हैं। इस बार यह महायज्ञ दलगांव के बकरालू महाराज के प्रांगण में आयोजित किया गया।

महायज्ञ में शामिल हुए क्षेत्र के प्रमुख देवता

भूंडा महायज्ञ के दौरान समरेई क्षेत्र के महेश्वर देवता, मंडलगढ़ के बौंद्रा देवता, रंटाडी के मोहरिष देवता, और छौहारा क्षेत्र के गुम्मा-अंधरेवठी तथा स्पैल वैली के खशकंडी देवता विशेष रूप से उपस्थित रहे। सभी मेहमान देवताओं ने मेज़बान बकरालू महाराज से मिलकर इस ऐतिहासिक आयोजन में भाग लिया।

मंडप लेखन और अंतिम रस्में

महायज्ञ के दौरान बकरालू महाराज के मंदिर प्रांगण में पारंपरिक मंडप लेखन की रस्म अदा की गई। यह रस्म ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोचारण और धार्मिक विधि-विधान के साथ पूरी की गई। दोपहर बाद सभी देवता अपने-अपने देवलुओं के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करते हुए मंदिर प्रांगण पहुंचे।

इसके बाद महायज्ञ की अंतिम रस्म “धूड़ पीटने” को भी विधिवत संपन्न किया गया। इस रस्म को भूंडा महायज्ञ का समापन चिह्न माना जाता है।

देवताओं का विदा होना

महायज्ञ के समापन पर सभी मेहमान देवता और भगवान परशुराम ने मेज़बान बकरालू महाराज से विदा ली। हजारों देवलू (अनुयायी) इस अवसर पर उपस्थित रहे और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ अपने-अपने गांवों की ओर लौट गए।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

भूंडा महायज्ञ का आयोजन क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में अत्यधिक महत्व रखता है। इसे देवताओं की कृपा प्राप्त करने और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा के लिए आयोजित किया जाता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्र के लोगों के सामाजिक जुड़ाव का भी एक बड़ा पर्व है।

39 साल बाद हुए इस महायज्ञ ने क्षेत्र के इतिहास में एक यादगार अध्याय जोड़ दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस आयोजन से क्षेत्र में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहेगी।

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