“भारत का कपड़ा उद्योग: आयात शुल्क छूट से मिलेगी राहत, किसानों और निर्यातकों को होगा लाभ“
भारत का कपड़ा उद्योग, जो देश का दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार देने वाला क्षेत्र है, उच्च गुणवत्ता वाले कपास तक नियमित पहुंच चाहता है। इसी को देखते हुए सरकार ने कपास पर आयात शुल्क छूट को 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ाने का निर्णय लिया है।
वस्त्र मंत्रालय ने गुरुवार को जानकारी दी कि केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) की अधिसूचना के बाद अब सूत, कपड़ा, परिधान और मेड-अप समेत पूरी कपड़ा मूल्य श्रृंखला में इनपुट लागत में स्थिरता आने की उम्मीद है। विभिन्न कपड़ा संघों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है।
भारत के कुल वस्त्र निर्यात में सूती वस्त्रों का हिस्सा 33% है, जिससे कपास की लगातार मांग बनी रहती है और किसानों को सीधा लाभ होता है। अप्रैल-अक्टूबर 2024-25 के बीच सूती वस्त्र निर्यात का मूल्य 7.08 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जो रेडीमेड परिधानों के बाद दूसरा सबसे बड़ा योगदान है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि आयातित कपास मुख्य रूप से विशेष औद्योगिक जरूरतों और निर्यात अनुबंधों को पूरा करता है तथा घरेलू कपास की जगह नहीं लेता। आयात अक्सर तब होता है जब घरेलू स्टॉक कम होता है, जिससे किसानों की खरीदी पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता।
कपड़ा उद्योग सीधे तौर पर 4.5 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार देता है। कपास की स्थिर आपूर्ति रोजगार के अवसर बनाए रखने और उद्योग की वृद्धि सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाती है। साथ ही, यह कदम छोटे और मध्यम उद्यमों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मज़बूत करेगा और ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्यों को भी गति देगा।
भारतीय कपास निगम लिमिटेड (CCI) न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व्यवस्था के ज़रिये किसानों के हितों की सुरक्षा करता है, जिससे उन्हें उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक मूल्य मिलता है।
सरकार ने कहा कि वह कपास की कीमतों पर कड़ी नज़र बनाए रखेगी और आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षा उपाय लागू करने में सक्षम रहेगी।
इससे उम्मीद है कि उच्च गुणवत्ता वाले कपड़ों और परिधानों के उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे निर्यात बाज़ारों में भारत की स्थिति और मज़बूत होगी।
