थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीजफायर, मलेशियाई पीएम ने की घोषणा

थाईलैंड-कंबोडिया सीमा संघर्ष पर युद्धविराम, मलेशिया की मध्यस्थता से बनी सहमति


थाईलैंड और कंबोडिया के बीच पिछले कई दिनों से जारी सीमा विवाद और सैन्य संघर्ष पर अब विराम लग गया है। मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने घोषणा की है कि दोनों देशों ने बिना किसी शर्त के तत्काल प्रभाव से युद्धविराम (सीजफायर) लागू करने पर सहमति जताई है। यह निर्णय मलेशिया द्वारा पेश की गई मध्यस्थता पहल के बाद लिया गया, जिसका उद्देश्य सीमा पर बढ़ते तनाव को कम करना और क्षेत्र में शांति बहाल करना था।

प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने इस पहल को दोनों देशों की ओर से शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में एक “सकारात्मक और जिम्मेदार कदम” करार दिया। उन्होंने यह भी बताया कि आने वाले दिनों में थाईलैंड और कंबोडिया के प्रतिनिधिमंडल आपसी मुद्दों पर बातचीत के लिए मलेशिया में बैठक करेंगे।

संघर्ष की पृष्ठभूमि
यह सीमा संघर्ष पिछले सप्ताह शुरू हुआ, जब थाईलैंड और कंबोडिया की सेनाओं के बीच सीमा के पास गोलीबारी और गोलाबारी की घटनाएं हुईं। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर संघर्ष की शुरुआत करने के आरोप लगाए थे। स्थिति उस समय गंभीर हो गई जब दोनों पक्षों ने भारी हथियारों और हवाई हमलों का प्रयोग किया, जिससे कई नागरिकों की जान गई और सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा।

नागरिकों और देशों की प्रतिक्रिया
इस संघर्ष के चलते सीमावर्ती गांवों में दहशत फैल गई थी और हजारों लोग सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर गए थे। कई देशों ने अपने नागरिकों को प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहने की चेतावनी जारी की थी और दूतावासों से संपर्क में रहने की सलाह दी थी।

मलेशिया की भूमिका
मलेशिया की इस सफल कूटनीतिक पहल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिल रही है। दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थिरता बनाए रखने और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में यह एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह हस्तक्षेप न केवल संघर्ष को टालने में मददगार रहा, बल्कि भविष्य में क्षेत्रीय विवादों के समाधान के लिए एक मॉडल भी प्रस्तुत करता है।

आगे की राह
युद्धविराम लागू हो चुका है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि दीर्घकालिक शांति के लिए संवाद और भरोसे की बहाली आवश्यक है। आने वाले समय में मलेशिया द्वारा प्रायोजित द्विपक्षीय वार्ताएं इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकती हैं।

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में शांति और स्थिरता के लिए केवल सैन्य शक्ति नहीं, बल्कि संवाद, कूटनीति और सहयोग ही वास्तविक समाधान हैं।

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