“पीएम मोदी की जापान और चीन यात्रा : भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का मजबूत संदेश“
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया जापान और चीन यात्रा को वैश्विक कूटनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है। जापान में रिकॉर्ड निवेश वादों और चीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भागीदारी से यह स्पष्ट हुआ कि भारत अब बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी स्वतंत्र पहचान को और मजबूत कर रहा है।
जापान में निवेश और तकनीकी साझेदारी
जापान ने अगले दस वर्षों में भारत में 10 ट्रिलियन येन (लगभग 68 अरब डॉलर) निवेश करने की घोषणा की। इसके साथ ही सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्रिटिकल मिनरल्स जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग का समझौता हुआ। दोनों देशों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए साझा दृष्टिपत्र भी जारी किया। साथ ही मानव संसाधन सहयोग को प्राथमिकता देते हुए शैक्षणिक, सांस्कृतिक और व्यावसायिक आदान-प्रदान का बड़ा लक्ष्य रखा गया।
चीन में SCO शिखर सम्मेलन
पीएम मोदी का दूसरा पड़ाव चीन का तियानजिन रहा, जहां उन्होंने SCO शिखर सम्मेलन में भाग लिया। यह उनकी सात साल बाद की चीन यात्रा है। रूस और चीन की मौजूदगी वाले इस मंच पर भारत की उपस्थिति को पूर्वी ध्रुवों के साथ संतुलन साधने और स्वतंत्र विदेश नीति का संकेत माना गया।
अमेरिका से तनाव और रणनीतिक विकल्प
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर ऊंचे टैरिफ लगाने के बाद यह यात्रा भारत के लिए रणनीतिक विकल्प के रूप में सामने आई। जापान से निवेश और तकनीकी सहयोग तथा चीन-रूस से संवाद बढ़ाना भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति का उदाहरण है।
विशेषज्ञों की राय और भविष्य की राह
विशेषज्ञ इस यात्रा को “गुटनिरपेक्षता 2.0” बताते हैं, जहां भारत किसी एक शक्ति-गुट पर निर्भर न रहकर अपने हितों के अनुरूप साझेदारियाँ करेगा। जापान का निवेश सेमीकंडक्टर और औद्योगिक ढांचे को गति देगा, जबकि चीन और रूस के साथ सहयोग भारत को वैश्विक मंच पर और प्रभावी बनाएगा।
