“SIR प्रक्रिया पर विपक्ष का दोहरा रवैया, बिहार में 65 लाख नाम हटाने पर बढ़ा विवाद”
धीरे-धीरे विपक्ष अपनी ही रणनीति में उलझता नजर आ रहा है। जब चुनाव आयोग कार्रवाई न करे तो शिकायत और जब कार्रवाई करे तो उसे ‘साजिश’ बताया जा रहा है। दिलचस्प यह है कि SIR (Special Summary Revision) को लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बताने वाले दल अब तक एक भी ठोस लिखित शिकायत पेश नहीं कर पाए हैं कि किसी मतदाता का नाम गलत तरीके से हटाया गया हो।
कर्नाटक में सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना की बर्खास्तगी इसका उदाहरण है, जहां उन्होंने अपनी ही पार्टी कांग्रेस के ‘वोट चोरी’ अभियान पर सवाल उठाए और कुछ ही घंटों में मंत्री पद से हटा दिए गए।
बिहार में SIR के तहत प्रकाशित ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से लगभग 65 लाख नाम हटाए गए—22 लाख मृत, 36 लाख पलायन या गुमशुदा, और 7 लाख डुप्लीकेट पंजीकरण वाले। विपक्ष ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करार दिया, जबकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट रोल से नाम हटना स्थायी विलोपन नहीं है। नागरिक पहचान व दस्तावेज देकर नाम फिर से जुड़ सकते हैं।
आयोग ने SMS अलर्ट, घर-घर BLO विजिट, और BLA-BLO-ERO चेन के जरिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने का दावा किया। बावजूद इसके, किसी भी BLA ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई। विपक्ष के आरोप कि आयोग फर्जी वोट तैयार कर रहा है, आयोग के मुताबिक तथ्यों से परे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार विपक्ष का निशाना ईवीएम नहीं, बल्कि वोटर लिस्ट है। सुधार की बजाय इस मुद्दे को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे यह सवाल उठता है कि मकसद मतदाता सूची की शुद्धता है या फिर चुनाव आयोग की साख पर चोट करना।
